हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,ग़ुरुर न करें, घमंड न करें। घमंड अगर हो जाता है तो यह पतन की शुरुआत है, तबाही की शुरुआत है, यह घमंड चाहे जिस वजह से हो अगर पैदा हो गया तो इन्सान की तबाही की शुरुआत हो जाती है। इन्सान में जब ग़ुरुर पैदा हो जाता है तो वह अंदरुनी तौर पर भी तबाह हो जाता है और समाज में भी उसकी पोज़ीशन ख़त्म हो जाती है। इसी तरह उसके आस पास जो समाजी काम होते हैं वह भी ख़त्म हो जाते हैं।
क़ुरआने मजीद की यह जो आयत है कि “अल्लाह ने बहुत से मौक़ों पर तुम्हारी मदद की है और हुनैन के दिन जब तुम्हें अपनी तादाद पर घमंड हो गया था तो उसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ और विशाल होने के बावजूद ज़मीन तुम पर तंग हो गयी“। यह भी इसी बारे में है। हुनैन वह पहली जंग थी जो मक्का पर जीत हासिल होने के बाद हुई थी।
पैग़म्बरे इस्लाम के साथ बहुत लोग थे। बद्र की जंग की तरह नहीं जब सिर्फ 313 लोग ही थे, यह लोग कई हज़ार थे। जिनमें नये नये मुसलमान, मुहाजिर और अंसार, मक्का में जीत हासिल करने वाले सब लोग शामिल थे। यह सब लोग हुनैन की जंग के लिए तायफ़ की तरफ़ गये थे। जब मुसलमानों ने अपनी इतनी बड़ी तादाद देखी तो उनमें ग़ुरुर पैदा हो गया। ख़ुदा ने इसी ग़ुरुर की वजह से उन्हें हार का मज़ा चखाया। इतनी बड़ी ज़मीन उनके लिए तंग हो गयी और वह लोग भाग लिये। वह जगहें जब लोग पैग़म्बर को छोड़ कर भाग गये और सिर्फ़ हज़रत अली (अ.स.) और कुछ लोग ही उनके पास बचे उनमें से एक जगह हुनैन की जंग है, ओहद की तरह। तो घंमड का नतीजा यही होता है। हालांकि ख़ुदा ने बाद में उन्हें जीत दी और वह जीतने में कामयाब रहे लेकिन ख़ुद पर ग़ुरुर का यही नतीजा होता है। यानी इन्सान ख़त्म हो जाता है, वह हमें तबाह कर देता है और उन लोगों को भी तबाह कर देता है जो हम पर टिके होते हैं। यही वजह है कि दुआए कुमैल में हमें सिखाया गया है कि एक यह भी दुआ करें अल्लाह से कि “हमें अपनी क़िस्मत पर ख़ुश और जो मिला उस पर राज़ी रहने की तौफ़ीक़ दे और हर हाल में हमें विनम्र बना“। हर हाल में विनम्र रहें यह घमंड के उलट है।
लोगों से दूरी
अगर हमारे अंदर घमंड पैदा हो जाए तो उसका एक नुक़सान यह है कि हम लोगों से दूर हो जाएंगे। लोग हमारी नज़र में छोटे हो जाएंगे हम लोगों को कमतर समझेंगे और फिर ज़ाहिर सी बात है कि लोग भी हम से दूर हो जाएंगे।
ग़ुरूर है तो अपनी ग़लतियां नज़र नहीं आएंगी
घमंड, हमें अपने बारे में ग़लतफ़हमी में डाल देता है, हम जो कुछ हैं ख़ुद को उससे ज़्यादा समझने लगते हैं, घंमड की मुश्किल यह है। जब हम ख़ुद को जो कुछ हैं उससे ज़्यादा समझने लगें तो फिर हमारी ग़लतियां हमारी नज़रों में छोटी हो जाएंगी। जब ग़लती छोटी हो गयी तो फिर हम उसे सुधारने पर ध्यान नहीं देते, सुधारते नहीं और वही ग़लती दोहराते जाते हैं और वैसे ही बने रहते हैं। ग़ौर कीजिए यह सब घमंड का नतीजा है, कितना बुरा है यह!
भला चाहने वालों की नसीहत न सुनना
घमंड हमें भला चाहने वालों की नसीहतों से भी दूर कर देता है। कभी यह होता है कि कोई दुश्मनी में हमें कुछ कहता है तो मान लिया जाए कि हम यह बर्दाश्त नहीं कर पाते और हमें ग़ुस्सा आ जाता है लेकिन कभी कभी लोग सच्चे दिल से और हमारे भले के लिए हमें हमारी बुराई बताते हैं लेकिन हम उसे भी नहीं सुनते, यह भी घमंड का एक असर है।
इमाम ख़ामेनेई,